सारे चमन को दश्त में तब्दील कर गए बे-दर्द थे जो ऐन जवानी में मर गए मल्बूस-ए-अहल-ए-होश का मेआ'र देख कर दीवाने बे-लिबास दरख़्तों से डर गए शायद उदासियों पे तरस आ गया मिरी कल रात शहर-ए-जाँ में फ़रिश्ते उतर गए सुनते हैं उन पे नूर बरसता है आज तक जिन वादियों से हो के तिरे ख़ुश-नज़र गए हम सर-फिरे भी ख़ूब थे ऐ 'दिल' कि इश्क़ में नामूस-ओ-नंग-ओ-नाम भी क़ुर्बान कर गए