सारे उश्शाक़ से हम अच्छे हैं हाँ तिरे सर की क़सम अच्छे हैं उलझा ही रहने दो ज़ुल्फ़ों को सनम जो न खुल जाएँ भरम अच्छे हैं कोई जंचता नहीं उस बुत के सिवा और भी यूँ तो सनम अच्छे हैं हश्र तक मुझ को जलाए रक्खा ये हसीनों के भी दम अच्छे हैं बहस हो जाए तो सब पर खुल जाए हैं भले आप कि हम अच्छे हैं ग़ैर की कुछ नहीं शिरकत इस में हम को ये तेरे सितम अच्छे हैं जीते हैं आरज़ू-ए-क़त्ल में हम दम तिरे तेग़-ए-दो-दम अच्छे हैं न हुआ का'बे का दीदार नसीब हम से आहू-ए-हरम अच्छे हैं ख़ूब है वक़्त जो कट जाता है जो गुज़र जाते हैं दम अच्छे हैं पूछते क्या हैं मिज़ाज-ए-'कैफ़ी' आप का लुत्फ़-ओ-करम अच्छे हैं