लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो फूटेगी हर कली में ज़बाँ देखते रहो बरपा सर-ए-हयात है इक हश्र-ए-दार-ओ-गीर देता है कौन किस को अमाँ देखते रहो दम-भर को आस्तान-ए-तमन्ना पे है हुजूम जाए बिछड़ के कौन कहाँ देखते रहो मिलने को है खमोशी-ए-अहल-ए-जुनूँ की दाद उठने को है ज़मीं से धुआँ देखते रहो महफ़िल में उन की शम्अ जली है कि जान-ओ-दिल खुलता है कब ये राज़-ए-निहाँ देखते रहो है बर्ग-ए-गुल को बारिश-ए-मिक़राज़ के पयाम तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-जहां देखते रहो आई निगार-ए-ग़म की सदा 'होश' हम चले तुम इम्तियाज़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ देखते रहो