सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था मिरी ख़्वाहिशों का अज़ाब था कोई ख़्वाब था तिरी ख़ुशबुओं की तलाश में मिरा राज़-दाँ वही एक कुंज-ए-गुलाब था कोई ख़्वाब था वो जो चाँद था सर-ए-आसमाँ कोई याद थी जो गुलों पे अहद-ए-शबाब था कोई ख़्वाब था जो न कट सका वो निशान था किसी ज़ख़्म का जो न मिल सका वो सराब था कोई ख़्वाब था