सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले अश्क आँखों में हैं होंटों पे बुका से पहले क़ाफ़िला ग़म का चला बाँग-ए-दरा से पहले हाँ यही दिल जो किसी का है अब आईना-ए-हुस्न वरक़-ए-सादा था उल्फ़त की जिला से पहले इब्तिदा ही से न दे ज़ीस्त मुझे दर्स इस का और भी बाब तो हैं बाब-ए-रज़ा से पहले मैं गिरा ख़ाक पे लेकिन कभी तुम ने सोचा मुझ पे क्या बीत गई लग़्ज़िश-ए-पा से पहले अश्क आते तो थे लेकिन ये चमक और तड़प इन में कब थी ग़म-ए-उल्फ़त की जिला से पहले दर-ए-मय-ख़ाना से आती है सदा-ए-साक़ी आज सैराब किए जाएँगे प्यासे पहले राज़-ए-मय-नोशी-ए-'मुल्ला' हुआ इफ़शा वर्ना समझा जाता था वली लग़्ज़िश-ए-पा से पहले