सफ़-ए-हयात से जब कोई तिश्ना-काम आया निज़ाम-ए-साक़ी-ए-महफ़िल पे इत्तिहाम आया मिला भी तो वो ग़म-ए-ज़िंदगी के काम आया मिरे लिए हर इक आँसू में एक जाम आया लब-ए-कलीम पे आया न फिर सवाल कोई हज़ार बर्क़-ए-पशेमाँ का फिर पयाम आया अदू को बख़्श दिए हम ने कौसर-ओ-तसनीम ये किस के होंटों को छू कर हमारा जाम आया खड़ा हूँ देर से गुम ज़ीस्त के दोराहे पर जो कारवाँ से छुटाता है वो मक़ाम आया कोई मुसव्विर-ए-हस्ती का शाहकार भी है अभी तलक तो हर इक नक़्श-ए-ना-तमाम आया हरीफ़ बन के जहाँ जब मिटा सका न हमें तो दोस्त बन के मोहब्बत का ले के नाम आया मुझे मिटा के वो थोड़ी ही देर ख़ुश से रहे फिर उस के बा'द मोहब्बत का इंतिक़ाम आया ख़ुशा वो साअ'त-ए-फ़िरदौस जब कि पहले पहल किसी के लब पे ज़रा रुक के अपना नाम आया रह-ए-हयात है सूनी मक़ाम-ए-इश्क़ के बा'द यहाँ तलक तो हर इक दिल सुबुक-ख़िराम आया हँसूँ कि रोऊँ मैं अपनी हयात पर 'मुल्ला' हवा से बच के सहर तक चराग़-ए-शाम आया