सर-ए-राह इक हादिसा हो गया अचानक तिरा सामना हो गया ख़ुद अपनी भी अब याद आती नहीं तिरी याद का हक़ अदा हो गया मसीहाइयाँ देखती रह गईं तिरा दर्द बढ़ कर दवा हो गया कटेगी किस उम्मीद पर ज़िंदगी अगर तेरा ग़म भी जुदा हो गया क़रीब आ गईं ख़ुद-बख़ुद मंज़िलें तिरा नक़्श-ए-पा रहनुमा हो गया उन्हें देख कर देखती रह गईं ख़ुदा जाने आँखों को क्या हो गया 'रिशी' ज़िंदगी ज़िंदगी बन गई दिल अपना अलम-आश्ना हो गया