सर-फिरे करने लगे हैं जज़्ब सोज़-ए-दिल की बात अब ख़ुदा रक्खे तो रक्खे आप की महफ़िल की बात क़ाफ़िले वालो अब आओ और आगे बढ़ चलें खा चुके रहबर का धोका जान ली मंज़िल की बात कितनी नफ़रत हो रही है सूरत-ए-साहिल से अब कितनी हसरत से किया करते थे हम साहिल की बात हो के बरहम उठने वाले हैं वो सारे तिश्ना-लब आई है हिस्से में जिन के साक़ी-ए-महफ़िल की बात ख़ुद ही अब रौशन करेंगे अपने ग़म-ख़ाने को हम देख ली तारो तुम्हारी सई-ए-ला-हासिल की बात सारे अम्माल-ए-हुकूमत मुझ से बद-ज़न हो गए कर रहा था एक दिन मैं बिस्मिल-ओ-क़ातिल की बात सोच ऐ 'नाज़िश' न हो ये भी फ़रारी ज़ेहनियत कर रहा है अहद-ए-हाज़िर में जो मुस्तक़बिल की बात