एक तन्हा ख़ातिर-ए-महज़ूँ जिसे अफ़्कार सौ एक मुझ बीमार से वाबस्ता हैं आज़ार सौ है तअज्जुब नोक-ए-मिज़्गाँ से जो ख़ूँ-आलूदा हूँ ख़ूँ-गिरफ़्ता एक दिल और ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार सौ मू-ब-मू क्यूँ-कर न हो मुझ को गिरफ़्तारी-ए-ज़ुल्फ़ काफ़िर-ए-इश्क़-ए-बुताँ मैं एक और ज़ुन्नार सौ दू-ब-दू कब हो सकें उस के 'असर' है आँख नार क्या हुआ, हैं देखने कहने को गर अग़्यार सौ