सरगर्म-ए-तमाशा था दिल महव-ए-अदा बरसों समझा ही नहीं नादाँ मफ़्हूम-ए-वफ़ा बरसों आशुफ़्ता-मिज़ाज आख़िर जाएँ तो कहाँ जाएँ हर गाम पे यारों ने धोका ही दिया बरसों इक बार गुज़रता है दिल दर्द की राहों से रग रग से तड़पती है तासीर-ए-दुआ बरसों वो आलम-ए-मदहोशी वो मसती-ए-रिंदाना गुल-रंग जवानी थी क्या होश-रुबा बरसों आग़ोश-ए-तसव्वुर में सौ बार गो आते हैं लेकिन न क़रीब आए वो जान-ए-हया बरसों गो 'मीर' के नालों में तासीर-ए-जुनूँ कम थी ऐसा भी कहाँ होगा अब शोला-नवा बरसों