ये चाँद इतना निढाल क्यूँ है ये सोचता हूँ ये चाँदनी को ज़वाल क्यूँ है ये सोचता हूँ मुझे तो उस का मलाल था वो जुदा हुआ था उसे भी उस का मलाल क्यूँ है ये सोचता हूँ अगर जुदाई की लज़्ज़तें ही अज़ीज़-तर हैं तो मुझ को फ़िक्र-ए-विसाल क्यूँ है ये सोचता हूँ मिरे फ़साने अवाम को भी पसंद क्यूँ हैं तिरे करम का कमाल क्यूँ है ये सोचता हूँ अगर मोहब्बत में सारे रिश्तों की अज़्मतें हैं तो दुश्मनी का सवाल क्यूँ है ये सोचता हूँ