सरिश्क-ए-ख़ूँ सर-ए-मिज़्गाँ कभी पिरोए न थे हम इतना हँसने के बा'द इस तरह से रोए न थे सितम ये है कि वो ख़ुर्शीद काटने आए तमाम उम्र सितारे जिन्हों ने बोए न थे अब आप अपनी तमन्नाओं से हूँ शर्मिंदा ये दाग़ वो हैं जो मैं ने लहू से धोए न थे बहे वो अश्क कि ग़र्क़ाब हो गईं आँखें सफ़ीने इस तरह हम ने कभी डुबोए न थे चराग़ लाओ कोई आफ़्ताब ही ढूँडें हम इस क़दर कभी तारीकियों में खोए न थे इक आह-ए-सर्द के बा'द आँखें मूँद लीं 'मोहसिन' ये क्या हुआ कभी ठंडी हवा में सोए न थे