तीरगी नाम है दिल वालों के उठ जाने का जिस को शब कहते हैं मक़्तल है वो परवाने का चल बयाबाँ की तरफ़ जी नहीं घबराने का रूह-ए-मजनूँ से घर आबाद है वीराने का दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम मैं तो समझा था कि दर खुल गया मयख़ाने का दम-ए-आख़िर की मुलाक़ात में क्या तुम से कहूँ वक़्त ही तंग बहुत हिज्र के अफ़्साने का दामन-ए-शम्अ' पे धब्बा न रहा वाह रे इश्क़ ख़ून अब तक नज़र आया नहीं परवाने का तंग है सेहन-ए-जहाँ साथ न ले बार-ए-अमल रास्ता मिलता है मुश्किल से गुज़र जाने का गुल-ओ-आहू चमन-ओ-दश्त में कह जाते हैं कुछ कहीं मौक़ा नहीं ऐ दिल तिरे बहलाने का रोके जाते हैं रह-ए-दोस्त के चलने वाले वही दुश्मन है जो हमदर्द है दीवाने का क़ब्र वाले मुए मम्नून-ए-ज़ियारत लेकिन नाम बदनाम किया आप ने वीराने का हिज्र ने कौन सा पैवंद लगा रक्खा था रास्ता मिल गया ख़ंजर को गुज़र जाने का तो शब-ए-ग़म को न समझा हो तो मैं समझा दूँ वही मैदान-ए-शहादत तिरे परवाने का क़िस्सा-ए-बाग़ है और मेरी मसर्रत की उमीद ढंग आता नहीं सय्याद को बहलाने का बज़्म-ए-रंगीं में तिरी ज़िक्र-ए-ग़म आया तो सही ख़ुश रहे छेड़ने वाला मिरे अफ़्साने का आशियाँ आबला-ए-बाग़ है ऐ सोख़्ता-दिल इक निशाँ छोड़ चला हूँ तिरे जल जाने का इबरत-ए-अक़्ल है वारफ़्तगी-ए-अहल-ए-मज़ाक़ होश वालों में है चर्चा तिरे दीवाने का हस्ब-ए-फ़रमाइश-ए-गर्दिश हैं ग़रीबों के मज़ार आसमाँ दोस्त है मंज़र मिरे वीराने का हिस्सा-ए-बख़्त का माने है यही दौर-ए-फ़लक बढ़ गया घूम के रस्ता मिरे पैमाने का हो गया ग़र्क़ सर-ए-शो'ला-ए-शम-ए-महफ़िल ख़ून ऊँचा हुआ उतना किसी परवाने का नज़्अ' के वक़्त जो कहता हूँ वो समझे कि नहीं बाब-ए-अव्वल तो यहीं ख़त्म है अफ़्साने का ले परेशानी-ए-दिल अब है तिरी उम्र दराज़ वक़्त खिंचने लगा ज़ुल्फ़ों के सँवर जाने का चोट खाने से दबी आग उभर आई है रंग बदला है मिरे दिल ने सनम-ख़ाने का दाग़-ए-दिल क़ब्र की ज़ुल्मत में है बे-नूर ऐसा जैसे देखा हो चराग़ आप ने वीराने का हुस्न और इश्क़ के नैरंग ख़ुदा ही जाने शम्अ' जलती है कि दिल जलता है परवाने का देख ख़ून-ए-सर-ए-फ़रहाद का रंगीं पत्थर ये नगीना है बनाया हुआ दीवाने का नज़्अ' इक ईद है रोते हुए वो आए हैं ऐ दिल-ए-ज़ार यही वक़्त है मर जाने का अहल-ए-दिल जागते-सोते में सुना करते हैं वक़्त कोई नहीं 'साक़िब' मिरे अफ़्साने का