सरकार-ए-दो-जहाँ हैं सरदार अंबिया के तख़्लीक़ का हैं बाइ'स महबूब हैं ख़ुदा के मेराज की थी जो शब पर्दे में उस ने देखे राज़-ओ-नियाज़ जैसे बंदे के और ख़ुदा के मिदहत उन्हीं की लब पे जारी रहे हमेशा होंटों तक आ गए हैं कुछ लफ़्ज़ ये दुआ के वो अम्न-ओ-आश्ती का पैग़ाम ले के आए सर-बस्ता राज़ खोले अल्लाह की रज़ा के इंसानियत को जीना सिखला दिया उन्हीं ने बतला दिए क़रीने इंसान को बक़ा के मौत और ज़िंदगी के मतलब बदल दिए हैं आल-ए-नबी ने जैसे कर्ब-ओ-बला में आ के