सर-निगूँ दिल की तरह दस्त-ए-दुआ हो भी चुके सिलसिले जिन के जुदा थे वो जुदा हो भी चुके दश्त में आया नहीं नाक़ा-ए-महमिल-बर-दोश नक़्श कुछ सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हो भी चुके नख़्ल-ए-उम्मीद रहा फिर भी नुमू से महरूम जब कि मौसम कई आग़ोश-कुशा हो भी चुके एक बे-नाम सी हसरत है बदन में बाक़ी जिस क़दर क़र्ज़ थे शब के वो अदा हो भी चुके ख़्वाहिश-ए-उक़्दा-कुशाई पे नदामत कैसी रस्म-ए-नाख़ुन से ख़फ़ा बंद-ए-क़बा हो भी चुके अब तो बस एक तसलसुल है तअल्लुक़ का दराज़ इम्तिहाँ हो भी चुका वादे वफ़ा हो भी चुके कब तक ऐ बाद-ए-सबा तुझ से तवक़्क़ो रक्खूँ दिल तमन्ना का शजर है तो हरा हो भी चुके मैं तो इक गूँज में ज़िंदा हूँ सर-ए-बज़्म 'रज़ी' जिन को होना था यहाँ नग़्मा-सरा हो भी चुके