सर-ओ-गर्दन की जुदाई देखो तेग़-ए-क़ातिल की सफ़ाई देखो तेग़ लचका के उठाई देखो न मुड़क जाए कलाई देखो मुझ से कहता है लहू मल के मिरा ये मिरे दस्त-ए-हिनाई देखो महफ़िल-ए-यार तलक पहुँचाया मेरी क़िस्मत की रसाई देखो टूट जाए न हमारी तौबा फिर घटा चर्ख़ पे छाई देखो मैं कहाँ और कहाँ रिफ़अ'त-ए-अर्श मगर आहों की रसाई देखो क्यूँ बिगड़ते हो किसी से 'आलिम' अपनी क़िस्मत की बुराई देखो