सरसब्ज़ हैं कभी तो कभी हैं सलीब रंग आँखों के इर्द-गिर्द में क्या क्या अजीब रंग फ़ितरत खुली तो लगने लगे सब रक़ीब रंग चेहरे दिखाई देते थे जिन के हबीब रंग तेरी फ़सुर्दगी की ख़बर आम क्या हुई आए न भूल कर भी चमन के क़रीब रंग है कब से इंतिज़ार में इक सर-बुरीदा शाख़ किस दिन जगाने आएँगे उस का नसीब रंग बिखरे हैं दूर दूर तलक नक़्श रात के ज़ुल्मत में खो गए हैं सहर के नक़ीब रंग बे-चेहरगी का शौक़ मुबारक हो आप को रहने दें मेरे पास मिरे बद-नसीब रंग