सरसरी भी है कारगर भी है ये कटारी भी है नज़र भी है किसे ताका किसे किया बिस्मिल ओ कमाँ-दार कुछ ख़बर भी है कौन कहता है गुल नहीं सुनते आह-ए-बुलबुल में कुछ असर भी है गो मिरी दास्ताँ है तूल बहुत तुम सुनो तो ये मुख़्तसर भी है मजमा'-उल-बर्ज़ख़ैन है इंसान ये फ़रिश्ता भी है बशर भी है नज़्र है जो पसंद आए तुम्हें दिल भी मौजूद है जिगर भी है वार तेरी निगह का रोके कौन कहीं उस तेग़ की सिपर भी है ये भी ख़िदमत में सर बुलंद रहे आइना-दार इक क़मर भी है उन के वा'दों का कुछ यक़ीन नहीं गुफ़्तुगू में अगर मगर भी है ग़ैर ने तेग़ पर गिला न धरा कोई मेरा सा बे-जिगर भी है ग़ैर क्या माअ'रके में आएँगे बुज़दिलों का यहाँ गुज़र भी है उट्ठो 'अकबर' चलो मदीने को इस से बेहतर कोई सफ़र भी है