शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा दिल में घर कर के मिरी जान ये पर्दा कैसा बा-अदब हैं तिरे सब कुश्ता-ए-नाज़ ऐ क़ातिल साँस लेंगे न दम-ए-ज़ब्ह तड़पना कैसा आप मौजूद हैं हाज़िर है ये सामान-ए-नशात उज़्र सब तय हैं बस अब वा'दा-ए-फ़र्दा कैसा तेरी आँखों की जो तारीफ़ सुनी है मुझ से घूरती है मुझे ये नर्गिस-ए-शहला कैसा हाथ बढ़ते हैं गरेबाँ की तरफ़ पाँव निकाल अल-मदद जोश-ए-जुनूँ सब्ज़ है सहरा कैसा ऐ मसीहा यूँही करते हैं मरीज़ों का इलाज कुछ न पूछा कि है बीमार हमारा कैसा गर्म-बाज़ारी-ए-ख़ुर्शीद-ए-क़यामत हुई सर्द हश्र में दाग़-ए-मोहब्बत मिरा चमका कैसा क्या कहा तुम ने कि हम जाते हैं दिल अपना सँभाल ये तड़प कर'' निकल आएगा सँभलना कैसा मुँह दिखाए न ख़ुदा हिज्र की शब का 'अकबर' ख़ौफ़ इस का है हमें हश्र का धड़का कैसा