'सरशार' किसी सुब्ह किसी शाम न आया इस गर्दिश-ए-अय्याम को आराम न आया आकर भी तू ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम न आया आया न इधर जाम इधर जाम न आया जीते-जी सद-अफ़्सोस न आया ये किसी काम मर कर भी तो इंसान किसी काम न आया तू तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को समझ हुस्न-ए-तअल्लुक़ क्या कम है ये पैग़ाम कि पैग़ाम न आया