सस्ते में उन को भूलना अच्छा लगा है आज चाय का एक घूँट भी काफ़ी रहा है आज रस्सी से झूलती हुई लड़की नहीं है ये ये ना-मुराद-ए-इश्क़ है लटका हुआ है आज किस ने कहा है ख़ैर है मैं तो नहीं गिरा वो तो शजर से आख़िरी पत्ता गिरा है आज झगड़ा हूँ बद-गुमान से चीख़ा हूँ फ़ोन पर ये सातवाँ था फ़ोन जो तोड़ा गया है आज दस्तक समझ के दर पे तू यूँ दौड़ के न जा कल भी हवा का काम था फिर भी हवा है आज दरिया को खींच लाने दे सहरा के दरमियान मटका ग़रीब-ज़ादी का प्यासा पड़ा है आज दिल बुत-कदा रहा तो तू पहलू-नशीन था काबा बना तू तेरी जगह पे ख़ुदा है आज 'राहिब' ज़बान पर मिरी छाले से पड़ गए देखा जो दर पे यार के ताला पड़ा है आज