मिरा अंदाज़ा ग़लत हो तो बता दे मुझ को तुझ पे इल्ज़ाम सिवा हो तो सज़ा दे मुझ को उस ने आँखों में जगह दी भी तो आँसू की तरह शायद इक हल्की सी जुम्बिश भी गिरा दे मुझ को तेरी नज़रों में मोहब्बत भी है इक खेल तो आ मैं करूँ तुझ पे भरोसा तू दग़ा दे मुझ को मैं उजाला हूँ तो तनवीर मुझे अपनी बना और अँधेरा हूँ तो ऐ शम्अ मिटा दे मुझ को अपनी तक़दीर से टकराऊँ बदल डालूँ इसे इतनी तौफ़ीक़ कभी मेरे ख़ुदा दे मुझ को कितनी देर और रुहांसा मुझे रक्खेगा 'ख़याल' अब रुलाना है तो फिर साफ़ रुला दे मुझ को