सस्ती शोहरत हासिल करने कूचों में चौबारों में खोटे सिक्के उछले उछले फिरते हैं बाज़ारों में हैं कुछ ऐसे लोग जो अपने पैसों से छपवाते हैं औरों के काँधों पे चढ़ कर तस्वीरें अख़बारों में भूकी नंगी जनता कब तक पेट का ढोल बजाएगी बोलो बाबू कुछ तो बोलो क्या रक्खा है नारों में बहता पानी फूल कँवल के साथ बहा ले आता है अम्न की आशा नाव बनी है दरियाओं के धारों में 'ख़ुसरव' इक आसेब के डर से घर का घर सब कील दिया फिर भी इक आसेब है ज़िंदा जिस्म की इन दीवारों में