सताओ न हम को सताए हुए हैं चराग़-ए-सहर हैं बुझाए हुए हैं जो ग़म को गले से लगाए हुए हैं वो सीने में शो'ले छुपाए हुए हैं सुनाओ ये मुज़्दे ग़मों के ऐ लोगो ये नग़्मे सुने और सुनाए हुए हैं गँवाए हुए हैं वो सब कुछ ही अपना जो शो'लों से दामन जलाए हुए हैं हमें आज़माए हुए है ज़माना ज़माने को हम आज़माए हुए हैं कसक दर्द की पूछिए इन दिलों से जो मुद्दत से ये बार उठाए हुए हैं ब-सद शौक़ आईं मिरी अंजुमन में निगाहें हम अपनी बिछाए हुए हैं हम आदाब से ज़िंदगी के हैं वाक़िफ़ हम ही अपना सब कुछ लुटाए हुए हैं तिरी याद की ये कसक मीठी मीठी निशाँ थे यहाँ कुछ मिटाए हुए हैं न मायूस हो ज़िंदगी कश्मकश से तिरी बज़्म को हम सजाए हुए हैं उठाए हैं शादाब गुल लोग जैसे यूँ बार-ए-अलम हम उठाए हुए हैं उठा साज़-ए-हस्ती तिरे साथ हूँ मैं ये नग़्मे मिरे गुनगुनाए हुए हैं वो रिश्तों की अज़्मत को क्या जानें 'अशरफ़' जो काँटों से दामन बचाए हुए हैं