साथ मौसम के हवा को भी मचल जाना था धूप को शम्स की बाहोँ में पिघल जाना था शाम से सुब्ह तलक दिल था तिरी सरहद में ऐसे हालात में तो तीर को चल जाना था आओ अब देखो धुआँ होते हुए छप्पर को या तो चिंगारी के लगते ही सँभल जाना था याद यूँ भी नहीं रखने थे हमें कुछ रिश्ते बाद इक वक़्त के मतलब ही बदल जाना था उस की जानिब से ही कोशिश में कमी थी वर्ना अब के भी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ उसे खल जाना था चाक के हाथ खड़े करने से पहले ही 'सुमन' तेरी मिट्टी को किसी शक्ल में ढल जाना था