साथ रह कर भी जानता कहाँ है वो मिरा है पर आश्ना कहाँ है ये तमन्ना है दो घड़ी जी लूँ ज़ीस्त का लेकिन रास्ता कहाँ है मुझ में जीता है हर नफ़स लेकिन मैं उसी का हूँ मानता कहाँ है जो दुआ में इबादतों में रहा वो मोहब्बत का देवता कहाँ है चोट गहरी लगी है दिल पे कोई किसी से उस का वास्ता कहाँ है साथ ख़ुद के हूँ अजनबी की तरह मेरा मुझ से ही सिलसिला कहाँ है