सौ मज़े इक नफ़स में मिलते हैं साँस लेने से ज़ख़्म छिलते हैं तेरे मिलने की जुस्तुजू में हम इस से मिलते हैं उस से मिलते हैं ज़ख़्म होते हैं आह से ताज़ा इस हवा से ये फूल खिलते हैं कर दिया ग़म ने काह शाएक़ को अब तो हज़रत हवा से हिलते हैं सब से मिलते हैं वो कहाँ 'शाएक' जिस से मिलते हैं उस से मिलते हैं