सौ तक गिनती बीस पहाड़े काम आए सारी दौलत में ये सिक्के काम आए इतने चेहरे जेब में रखे फिरते थे वक़्त पड़े पर कितने चेहरे काम आए तेरी अय्याशी थी मेरी मजबूरी तू ने कपड़े फेंके मेरे काम आए जिन को छत पर डाल दिया था गर्मी में सर्दी में वो धूप के टुकड़े काम आए आँखों ने ही इस को पाला पोसा है शर्म के कब ये चिलमन पर्दे काम आए छालों के पानी से आख़िर प्यास बुझी जंगल में जंगल के तोहफ़े काम आए