शुक्रिया बीच सफ़र आप ने तन्हा छोड़ा इस तरह आप ने मुझ से मिरा रिश्ता जोड़ा शिद्दत-ए-तैश से काँप उट्ठी हैं सारी शाख़ें जब भी गुलचीं ने किसी शाख़ से गुल को तोड़ा अपने अंदर से वो इक दम न निकालेगा मुझे मुझ को आँखों से वो टपकाएगा थोड़ा थोड़ा हम ने तहज़ीब से मयख़ाने का बदला है निज़ाम हम ने मय फेंकी न मयख़ाने में साग़र तोड़ा दोनों ख़ुश हैं तो अब इस बात का क्या ज़िक्र करें किस ने रुख़ अपना दर-ए-यार से पहले मोड़ा