सवाद-ए-मंज़र-ए-ख़्वाब-ए-परेशाँ कौन देखेगा असीर-ए-ज़ुल्फ़ हो कर शाम-ए-हिज्राँ कौन देखेगा गुलों की दिलकशी फ़स्ल-ए-बहाराँ कौन देखेगा न होंगे जब हमीं रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा शब-ए-ग़म तुम न आए ग़म नहीं ग़म है तो ये ग़म है मिरे दामन पे अश्कों का चराग़ाँ कौन देखेगा गुदाज़-ए-शम्अ' की सूरत जवाज़-ए-ग़म करो पैदा ये परवानो तुम्हारा सोज़-ए-पिन्हाँ कौन देखेगा क़यामत में लबों पर शिकवा-हा-ए-पुर-जफ़ा ला कर तिरी मासूम फ़ितरत को पशेमाँ कौन देखेगा यक़ीनन शौक़ के पर्दों को भी आँखों से उठना है नहीं तो हश्र में कल रू-ए-जानाँ कौन देखेगा गरेबाँ फाड़ कर 'जुम्बिश' चलो फूलों की महफ़िल में ये सहरा है यहाँ हाल-ए-परेशाँ कौन देखेगा