सवाब-ए-इश्क़ की ख़ातिर कमाल कर बैठे वो मेरा शहर में रहना मुहाल कर बैठे कुछ और वो न सितमगर ख़याल कर बैठे गदा-ए-हुस्न अगर कुछ सवाल कर बैठे जो बेवफ़ा थे उन्हें बख़्श दी मता-ए-वफ़ा ये आशिक़ान-ए-मोहब्बत कमाल कर बैठे सुनी न एक भी ज़ालिम ने आरज़ू दिल की ये किस के सामने हम अर्ज़-ए-हाल कर बैठे अभी तो होश में आए न थे ये दीवाने वो फिर नुमाइश-ए-रू-ए-जमाल कर बैठे ज़रा सी देर में नक़्शा बदल गया 'हैरत' मिरी वफ़ाओं को वो पाएमाल कर बैठे