सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है मजाल-ए-दीद पे बिजली गिराई जाती है ख़ुदा ब-ख़ैर करे ज़ब्त-ए-शौक़ का अंजाम नक़ाब मेरी नज़र से उठाई जाती है इसी को जल्वा-ए-ईमान-ए-इश्क़ कहते हैं हुजूम-ए-यास में भी आस पाई जाती है अब आ गए हो तो और इक ज़रा ठहर जाओ अभी अभी मिरी मय्यत उठाई जाती है मिरे क़यास को अपनी तलाश में खो कर मिरे हवास को दुनिया दिखाई जाती है