शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है रिश्ता ही मिरी प्यास का पानी से नहीं है कल यूँ था कि ये क़ैद-ए-ज़मानी से थे बेज़ार फ़ुर्सत जिन्हें अब सैर-ए-मकानी से नहीं है चाहा तो यक़ीं आए न सच्चाई पे उस की ख़ाइफ़ कोई गुल अहद-ए-खिज़ानी से नहीं है दोहराता नहीं मैं भी गए लोगों की बातें इस दौर को निस्बत भी कहानी से नहीं है कहते हैं मिरे हक़ में सुख़न-फ़हम बस इतना शेरों में जो ख़ूबी है मुआ'नी से नहीं है