सवाल-ए-लुत्फ़-ओ-करम पर क़यास क्या करते वो मिल भी जाता तो हम ना-सिपास क्या करते हर एक शख़्स मिला दास्तान-ए-दर्द लिए हम अपने ज़ख़्म-ए-निहाँ बे-लिबास क्या करते वो घूमता फिरे ले कर जहान मुट्ठी में हम अपना ख़ौफ़ लिए आस-पास क्या करते दिल-ओ-दिमाग़ पे जब इख़्तियार था उस का किसी हवाले से फिर इल्तिबास क्या करते ये सोचते थे कहें हाल-ए-दिल उसे लेकिन बता के 'कैफ़' उसे दुख उदास क्या करते