साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का क्या मर्तबा बुलंद हो अपने मज़ार का वो दश्त-ए-हौलनाक वो हुब्ब-ए-वतन का जोश फिर फिर के देखना वो किसी बे-दयार का लौ दे रही है शाम से आज आह-ए-आतिशीं शोला भड़क रहा है दिल-ए-दाग़दार का तस्वीर-ए-नज़अ देखना चाहो तो देख लो रह रह के झिलमिलाना चराग़-ए-मज़ार का पर तौलने लगे फिर असीरान-ए-बद-नसीब शायद क़रीब आ गया मौसम बहार का मू-ए-सफ़ेद काँपते हाथ और जाम-ए-मय दिखला रहे हैं रंग ख़िज़ाँ में बहार का अंगड़ाइयों के साथ कहीं दम निकल न जाए आसाँ नहीं है रंज उठाना ख़ुमार का साक़ी गिरा न दीजियो ये जाम-ए-आख़िरी दिल टूट जाएगा किसी उम्मीद-वार का मस्तों की रूहें भटकेंगी अच्छा नहीं है अब घिर-घिर के आना क़ब्रों पर अब्र-ए-बहार का देखो तो अपने वहशियों की जामा-ज़ेबियाँ अल्लाह रे हुस्न पैरहन-ए-तार-तार का जुर्म-ए-गुज़िश्ता अफ़्व कुन ओ माजरा मपुर्स मारा हुआ हूँ इस दिल-ए-बे-इख़्तियार का दुनिया से 'यास' जाने को जी चाहता नहीं अल्लाह रे हुस्न गुलशन-ए-ना-पाएदार का