साया जिस का नज़र आता है मुझे वो भी साया नज़र आता है मुझे वो जो होता ही चला जाता है कुछ न होगा नज़र आता है मुझे चाट जाती है नज़ारों को नज़र क्या कहूँ क्या नज़र आता है मुझे आइना फाँद गया जोश-ए-जुनूँ बिल्कुल ऐसा नज़र आता है मुझे हर लिखा ख़ामा-ए-दानाई का आज उल्टा नज़र आता है मुझे क्या ग़ज़ब है कि मरा अस्ल वजूद अक्स मेरा नज़र आता है मुझे क्या क़यामत है कि जाता हुआ वक़्त इधर आता नज़र आता है मुझे कहीं ख़ुश्बू है सुनाई देती कहें नग़्मा नज़र आता है मुझे बीज बस अपने शजर होने का इक इरादा नज़र आता है मुझे बे-मुसाफ़िर है सफ़र पेश-ए-नज़र ज़ेहन गोया नज़र आता है मुझे हर गुमाँ एक हक़ीक़त है 'मुहिब' सच-मुच ऐसा नज़र आता है मुझे