साया न जिस का आया कभी मेरे आस-पास रहने लगा है आज वही मेरे आस-पास मिलता नहीं है मुझ को ख़ुशी का कोई सुराग़ फैली हुई है सिर्फ़ ग़मी मेरे आस-पास जिस ने दिया है मुझ को हर इक मोड़ पर फ़रेब वो यार फिर रहा है अभी मेरे आस-पास तू जो बिछड़ गया है तो ये ज़िंदगी मिरी बिखरी पड़ी है टूटी हुई मेरे आस-पास आए न कोई दिल के निहाँ-ख़ाने में मिरे रंज-ओ-अलम बहुत हैं अभी मेरे आस-पास शायद किसी की लग गई 'आदिल-हिरा’ नज़र रहती नहीं है कोई ख़ुशी मेरे आस-पास