साए फैल गए खेतों पर कैसा मौसम होने लगा दिल में जो ठहराव था इक दम दरहम-बरहम होने लगा परदेसी का वापस आना झूटी ख़बर ही निकली ना बूढ़ी माँ की आँख का तारा फिर से मद्धम होने लगा बचपन याद के रंग-महल में कैसे कैसे फूल खिले ढोल बजे और आँसू टपके कहीं मोहर्रम होने लगा ढोर डंगर और पँख पखेरू हज़रत-ए-इंसाँ काठ कबाड़ इक सैलाब में बहते बहते सब का संगम होने लगा सब से यक़ीन उठाया हम ने दोस्त पड़ोसी दिन तारीख़ ईद-मिलन को घर से निकले शोर-ए-मातम होने लगा