सायों से भी डर जाते हैं कैसे कैसे लोग जीते-जी ही मर जाते हैं कैसे कैसे लोग छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी ख़ाली हाथ गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग बुझे दिलों को रौशन करने सच को ज़िंदा रखने जान से अपनी गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग अक़्ल-ओ-ख़िरद के बल बूते पर सब को हैराँ कर के काम अनोखे कर जाते हैं कैसे कैसे लोग हो बे-लौस मोहब्बत जिन की ग़नी हों जिन के दिल दामन सब के भर जाते हैं ऐसे ऐसे लोग