सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का इक अक्स से सौ अक्स में ढलने की तरह का अब सानेहा-ए-हिज्र-ए-मुसलसल का मज़ा भी है आतिश-ए-तख़्लीक़ में जलने की तरह का सब क़ैद हुआ जाता है तंगनाए-ग़ज़ल में मंज़र पस-ए-मंज़र है बदलने की तरह का अपनी ही तरह का है क़दम राह-ए-तलब में गिरने की तरह का न सँभलने की तरह का समझो कि क़रीब आ गई इरफ़ान की मंज़िल जीने में मज़ा आए जो मरने की तरह का ये सोच के मैं गोशा-ए-दिल वा नहीं करता उस शोख़ का मिलना है बिछड़ने की तरह का कुछ ऐसे ही मौसम में उसे आना था शायद है मौसम-ए-दिल फूलने-फलने की तरह का ये सोच के में गोशा-ए-दिल वा नहीं करता उस शोख़ का मिलना है बिछड़ने की तरह का कुछ ऐसे ही मौसम में उसे आना था शायद है मौसम-ए-दिल फूलने-फलने की तरह का