शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं आँसू मिरे दिल पे गिरने लगते हैं तुझ से दूरी और क़यामत लगती है आपस में दो वक़्त जो मिलने लगते हैं दिन तो जैसे-तैसे कट ही जाता है रात को उठ उठ तारे गिनने लगते हैं एक तबस्सुम देख के तेरे होंटों पर फूल ख़िज़ाँ की रुत में खिलने लगते हैं होता है शानों पे महसूस उस का हाथ मौसम जब भी रंग बदलने लगते हैं उस की जब हो जाए 'नुसरत' चश्म-ए-करम चाक गरेबानों के सिलने लगते हैं