शब की आँखों से जो गिरा होगा चाँद बन कर चमक रहा होगा रतजगे दे के उम्र भर के हमें वो हसीं ख़्वाब देखता होगा शहर-ए-शब में पुकार कर देखूँ कोई इंसाँ तो जागता होगा एक झंकार सी सुनाई दी इक तसव्वुर बिखर गया होगा सोचता हूँ मिरे लिए शायद वो भी रातों में जागता होगा वो भी तन्हा उदास लम्हों में मेरे बारे में सोचता होगा तेरी रंजिश बजा सही 'अकरम' तुझ से वो भी तो कुछ ख़फ़ा होगा