शब-ए-फ़िराक़ हमारा वो नीम-जाँ होना अजल का आप ही घर में वो मेहमाँ होना ख़फ़ा न सुन के मिरा हाल मेहरबाँ होना कि इस बयान को इक दिन है दास्ताँ होना दयार-ए-हुस्न की सर-गरमियाँ मआ'ज़-अल्लाह हर इक क़दम पे मोहब्बत का इम्तिहाँ होना कोई सितम हो यहीं से शुरूअ' होता है ग़ज़ब है कूचा-ए-जानाँ का आसमाँ होना अजल से पहले सबा ले उड़ी सर-ए-मंज़िल कहाँ पे आया है काम अपना ना-तवाँ होना उठा वो दर्द कलेजे में वो गिरे आँसू नहीं है खेल मोहब्बत का राज़-दाँ होना निगाह-ए-क़हर कभी और कभी करम की नज़र इन्हीं अदाओं का मिल-जुल के दास्ताँ होना वो क्या करे न मिटे गर तिरी मोहब्बत में लिखा हो जिस के मुक़द्दर में बे-निशाँ होना अभी न शाद हो तकमील-ए-इश्क़ पर 'अफ़्क़र' अभी है तर्क-ए-मोहब्बत का इम्तिहाँ होना