शब-ए-फ़िराक़ का मारा हूँ दिल-गिरफ़्ता हूँ चराग़-ए-तीरह-शबी हूँ मैं जलता रहता हूँ कभी का मार दिया होता ज़िंदगी ने मुझे ये शुक्र है कि मैं ज़िंदा-दिली से ज़िंदा हूँ कोई फ़रेब-ए-तमन्ना न जल्वा और न ख़याल दयार-ए-इश्क़ में तन्हा था और तन्हा हूँ ज़माना मेरी हँसी को ख़ुशी समझता है मैं मुस्कुरा के जो ख़ुद को फ़रेब देता हूँ न सुन सकोगे अब अशआ'र मेरे ऐ लोगो क़लम को ख़ूँ में डुबो कर मैं शे'र कहता हूँ ये इंक़लाब है कल मैं ने रह दिखाई थी और आज राह में ख़ुद ही भटकता फिरता हूँ जदीदियत का हूँ शैदा रिवायतों का अमीं मैं इम्तिज़ाज में दोनों के शे'र कहता हूँ जिसे न दोस्ती महबूब और न पास-ए-वफ़ा उस आदमी से हमेशा गुरेज़ करता हूँ 'शफ़ीक़' मुझ को न इल्ज़ाम दें अज़ल से ही ख़ता-सरिशत है मेरी ख़ता का पुतला हूँ