शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे नक़ाब उठा कि सहर का है इंतिज़ार मुझे क़सम है लाला ओ गुल के उदास चेहरों की फ़रेब दे न सका मौसम-ए-बहार मुझे ब-सूरत-ए-दिल-ए-पुर-दाग़ उन की महफ़िल से अता हुई है मोहब्बत की यादगार मुझे मज़ाक़ कल जो उड़ाती थी ग़म के मारों का वो आँख क्यूँ नज़र आती है सोगवार मुझे जफ़ा ओ जौर-ए-मुसलसल वफ़ा ओ ज़ब्त-ए-अलम वो इख़्तियार तुम्हें है ये इख़्तियार मुझे