शब-ए-ग़म ज़ब्त-कोशी से हम इतना काम लेते हैं जो दिल में हूक उठती है कलेजा थाम लेते हैं न जाने क्यूँ निगाहों से गिरे जाते हैं दुनिया की गुनह करते हैं कोई या तुम्हारा नाम लेते हैं उसी को एहतिराम-ए-हुस्न कहते हैं हक़ीक़त में हम अपने ज़िक्र से पहले तुम्हारा नाम लेते हैं नशात-ए-आशियाँ का राज़ इरफ़ान-ए-अक़ीदत है चमन की पत्ती पती से तिरा पैग़ाम लेते हैं जिन्हें नाज़ों से पाला हम ने आग़ोश-ए-मोहब्बत में वही गिन गिन के बदले ऐ दिल-ए-नाकाम लेते हैं नशेमन से हैं सारी कैफ़ियात-ए-ज़िंदगी क़ाएम गुलों के रंग-ओ-बू से हम सुरूर-ए-जाम लेते हैं दिल-ए-ग़म-आशना की मुज़्तरिब घड़ियाँ नहीं कटतीं चले आओ कि हम बैठे तुम्हारा नाम लेते हैं हमें ऐ 'ज़ेब' क़ल्ब-ए-माहियत की भी तो आदत है परेशानी से हम अक्सर सुकूँ का काम लेते हैं