शब-ए-ग़म मुख़्तसर सी हो गई है हयात अब मो'तबर सी हो गई है नई राहें निकलती आ रही हैं ये लग़्ज़िश राहबर सी हो गई है वफ़ा की ख़ू न जिद्दत दुश्मनी में ये दुनिया बे-हुनर सी हो गई है मिरी बे-चारगी क्या पूछते हो वो अब तो चारा-गर सी हो गई है झुकी रहने लगी हैं अब वो नज़रें फ़ुग़ाँ कुछ कार-गर सी हो गई है