शब-ए-हिज्राँ की वहशत को तू ऐ बेदाद क्या जाने जो दिन पड़ते हैं रातों को मुझे तेरी बला जाने जुदा हम से हुआ था एक दिन जो अपने यारों में ख़बर फिर कुछ न पाई क्या हुआ वाक़े' ख़ुदा जाने न रख ऐ अब्र तू सर पर हमारे बार मिन्नत का वो बादल और हैं जो आग को दिल की बुझा जाने न रख ऐ दिल तू उम्मीद-ए-वफ़ा इन बे-वफ़ाओं से ख़ुदा से है वो बेगाना जो बुत को आश्ना जाने जुनूँ ने उस के गुल से बुलबुलों तक शोर डाला है 'यक़ीं' सा हो कोई तब इस तरह धूमें मचा जाने