शब-ए-हिज्राँ में दम निकलता है कब पयाम-ए-विसाल टलता है दिल-ए-बीमार से है तंग मसीह दाग़ से आफ़्ताब जलता है बे-ज़री से हूँ पाएमाल-ए-बुताँ ज़ोर किस का ख़ुदा से चलता है दिल न ले ऐ सनम बराए-ख़ुदा इस से कुछ जी मिरा बहलता है आतिश-ए-इश्क़ ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ है हड्डियों से धुआँ निकलता है तेरे हँसने पे मैं जो रोता हूँ अब्र मानिंद-ए-बर्क़ जलता है तुझ से ऐ अश्क माह-ए-फ़ुर्क़त हो रंग क्या क्या फ़लक बदलता है अपने बीमार को न पूछ मसीह अब कोई दम में दम निकलता है दाग़ का जिस्म-ए-ज़ार से है फ़रोग़ ख़स से जैसे चराग़ जलता है सर्द या अर्श पा-ए-क़ातिल पर लाश पर वो भी हाथ मलता है