वो जैसे दुनिया चला रहा है फ़क़त कहे को निभा रहा है ख़ुदा का जाने है क्या इरादा जो फिर से हम को मिला रहा है शुरूअ' में कुछ झिझक तो होगी तवील अर्सा ख़फ़ा रहा है रचा के साँसों में मेरी ग़ज़लें वो बाँसुरी पर सुना रहा है नहीं मैं उस से ख़फ़ा नहीं हूँ जो शख़्स मुझ को मना रहा है तुझे मोहब्बत ने डस लिया ना ये नील सब कुछ बता रहा है मिनट की सोई से बाँध कर वो घड़ी में हम को घुमा रहा है मैं एक नाज़िर वो इक मुसव्विर कई मनाज़िर दिखा रहा है है सामने हश्त-पहलू रस्ता हर इक से गौतम बुला रहा है अक़ब में है उस के मौज-ए-सरकश हबाब को जो बचा रहा है कोई मुख़ातब नहीं था इस का मिरा सुख़न बे सदा रहा है मैं शे'र कहने से डर रही हूँ ख़याल हिम्मत बँधा रहा है